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भारत में अंगरेज़ी राज

१३५० भारत में अंगरेज़ी राज साथ जल्म ° तीसरी बात यह कि सन् १८५७ के विषतब ने, जिसका जिक्र अगले अध्याय में किया जायगा, पूरी तरह - वाजिदली शाह साबित कर दिया कि वाजिदपुली शाह नवाद की सmप्रियता अपनी दिन्दू और मुसलमान प्रजा में सर्वाप्रिय था, और कम्पनी का हस्तक्षेप अवध के अन्दर किसी भी अवध निवासी को रुचिकर न था । अवध के नवाबों के अधीन अधिकांश बड़े बड़े ज़मींदार और तालुकेदार हिन्दू थे । कम्पनी की सता जमते तालुकेदारों के ही इनमें से अधिकांश की जमीनें छीनी जाने तग, उनके गाँव ज़ब्त किए जाने लगे, उनके क़िले गिराए जाने लगे । सर जॉन के लिखता है कि इन प्राचीन पैतृक जमींदारों के साथ ‘घोर अन्याय' ( a cruel wrong ) किया गया। समस्त अवध के अन्दरबइ ज़बरइस्ती आर बरवादी शुरू हो गई जिसका परिणाम सन् १८५७ के भयकर विप्लब में दिखाई दिया । अधिकांश अंगरेज़ इतिहास लेखकों ने अत्यन्त स्पष्ट और ज़ोरदार शब्दों में अवध के नरेश और अक्ध की प्रजा के प्रति डलहौज़ी के इस अन्याय की घोरता को स्वीकार किया है । ) भारत की शेष समस्त छोटी बड़ी ज़मींदारियों के लिए लॉर्ड डलहौजी ने इनाम कमीशन नाम की एक जाँच इनाम कमीशन कमेटी कायम की। इस कमेटी ने समस्त भारत को लगभग ३५ हज़ार जागीरों और इनामों की जाँच की और दूस ।