सन १८७ की क्रान्ति से पहले दृष्टि डालनी होगी। सन् १८५७ के विलय की नावे बाम्य में 7 - सन् १७५७ में प्लासी के मैदान में रफ़्बी गई थी। जो अनेक तर की श्राबाजें सन् १८५७ के प्रसंस्थय संग्रामों में भारतीय सिपादियों के मुख -से निकलती हुई धुनाई देती थीं, उनमें एक प्राधान यह भी थी-“श्रा इम प्लासी का बदला चुकाने या हैं !" मई गौर जून के महीनों में दिल्ली के हिन्दोस्तानी अख़बारों में ग्रह पेशीनगद छपी थी कि ठीक लासी की शाताट्टी के दिन अर्थात् २३ जन सन् १८५७ को भारत के ग्रन्ट्र अंगरेजी राज का अन्त हो जायगा 1 इस पेशीनगोई का उत्तर से दक्खिन और पूर्व से पतुिम तर्क समस्त भारत में एलान कर दिया गयाऔर इसमें कोई भी सन्देह नहीं कि बिप्सव में भाग लेने वाले भारतवासियों के दिलों पर इसका बहुत भारी प्रभाव पड़ा । प्लासी के समय से ही अनेक भारतवार्षोिं दिलों में अंगरेजों और अंगरेजी राज के विरुद्ध प्रोध औौर श्रतोप प्लासी से बैलोर के ! के भाव बढ़ते जा रहे थे 1 साक्ष्य के समग्र से लेकर डलहौजी के समय तक जिस प्रकार कम्पनी के प्रतिनिधियों ने अपने गम्भीर बादों और दस्तखपती सम्मूि पत्र की ख़ाक परा न कर भारत के प्रगणि'त राजठल्लों को पददलित किया और उनकी रियासतों को एक एक कर गरता राज में शामिल कियाजिस प्रकार देश के चीन उद्योग धन्धाँ। को नष्ट कर लाखों भारतवासियों से उनकी जीविका चीनी, जिस प्रकार प्रदाय बेगमों औौर रानियों के मदों में घुस कर उन्हें गुदर तक ।