पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज.pdf/२७६

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१३५५
सन्१८५७ की क्रान्ति से पहले

सन १८५७ की क्रान्ति से पहले १३५५ के राज में शामिल कर लिग्रा । डलहौजी ने निरपराध बगमा के - साथ युद्ध छेड़ कर पगू के प्रान्त को बरमा राज से पृथक कर लिग्रा में भारतीय नरेनों म गोद लेने की प्राचीन प्रथा का तिग्म्कार कर डलहौजी ने सतारा, झाँसी, नागपुर इत्यादि अनेक रियास का अन्त कर उन्हें अंगरेजी राज में शामिल कर लिया । नवाब के 'कुशासन' का बहाना लेकर उसने सन १८६ में अवध की झरने सल्तनत को कम्पनी के राज में मिला लिया, नयाघ बाजिद अली शाह को कैद करके कलकत्ते भेज दिया और भारत के सैकड़ों पुराने तालुकेदारों और जमींदारों की पैतृक जागीर छीन कर उन्. पाल बना दिया । यह सब व्यवहार तो भारतीय नरेनों भैर सरद्वारों के साथ हुआ । किन्तु साधारण प्रजा के साथ भी साधारण प्रक्षा के अंगरेजी का व्यबदार अनेक प्रकार से दिन प्रति साथ अंगरेज़ों दिम अधिकाधिक भ्रष्ट और असत होता जा का बर्ताव रहा था । स्थान स्थान पर श्रृंगल ग्रसर अपने सामने से घोड़े पर थाने बाले हिन्दोस्तानियॉं को घोड़े में उतर कर चलने के लिए विवश करते थे। उनके धार्मिक और Y सामाजिक रिब की भी परबा न की जाती थी। लॉर्ड डलहौजी के शुरू के दिनों में सहारनपुर में एक नया अंगरेजी अस्पताल बना, जिसमें दर मय सहारनपुर का पुरुप और स्त्री रोगिॉ को थाने की श्राशा ही अंगरेजी श्रपताल गई । सहारनपुर के अंगरेज़ फिरों में यह