पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज.pdf/२७८

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सन् १८५७ की क्रान्ति के पहले

सन् १८५७ की क्रान्ति से पहले १५७ सम्राट शाहश्राहम के समय तक, जो सन् १७५० से १८०६ तक दिल्ली के तख्त पर रहा, भारत में रहने वाल दिल्ली सम्राट शुर समस्त ग्रंगरेज अपने तई दिल्ली सम्राट की गर प्रजा कहा करते थे। । सम्राट के फरमान दागा। ही अंगरेज़ कम्पनी को चपनी तिजारती कोठियाँ बनाने के लिये कलकत्तामद्रास, खुरत नादिक में जागीरें मिलीं। उन जागोरों के लिए अंगरेज़ दिल्ली दरबार को बराबर तिराज देते थे और गबरनरजनरल से लेकर छोटे से छोटे तक जो अंगरेज़ सम्राट के दरबार में जाता था वह शेष ग्वारियों के समान माघ बजा लाता था, सम्राट को नज़र पेश करता था, और अपने स्थान पर श्रदब के साथ खड़ा रहता था । हर गवरनर जनरल की मुहर में "दिल्ली के बादशाह का फिी ख़ास’ ( अर्थात् विशेष नौकर ) ये शब्द खुदे रहते थे । शाहटालम ने सबसे पहले १७६५ में क्लाइव को घझाल और बिहार की दीवानी के अधिकार प्रदान किए । इसके बाद धीरे धीरे दिल्ली सम्राट के दयार में साज़ि गौर ख़ानेजड़ियाँ बढ़ती गई 1 दिल्ली सम्राट का खेल सम्राट , घटता गया और अंगरेज़ कम्पनी का बल बढ़ता शाहआलम थ्रीर Y सींधिया दिल्ली माधोझी सधिया गया । माधोजी ने पर चढ़ाई करके भारत सम्राट क वल को फिर से थोड़ा । बहुत स्थापित किया और सम्राट, उसकी राजधानी और आास पास के इलाके की सैनिक रक्षा का भार अपने हाथों में लिया । सम्राट शाह्मातम की लिखी हुई एक फारसी कविता प्रभी तक