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भारत में अंगरेज़ी राज

१३८ भारत में अंगरेज़ी रा प्रचलित है, जिसमें उसने माधोजी सींधिया को अपना फ़ज़म्द जिगरवन्दे मन’ ’ कहा है और उसकी दिल से तारीफ की है ।* र कम्पनी ने भारत में अपना राज जमाने के लिये मराठों की बढ़ती हुई सत्ता को कुचलना आवश्यक समझा । यह दूसरे मराठा युद्ध का समय था। जनर लेक ने कम्पनी की ओर से एक “इकरारनामालिज कर अपने दस्तखतों से शाहआलम के सामने लेक का । ले की पेश किया, जिसमें कम्पनी ने शाहआलम से इकरारनामा यह वादा किया कि हम समस्त देश पर आपका प्राचीन क्रियात्मक आधिपत्य फिर से कायम कर देंगेइत्यादि। अभागा, निर्बल और अदूरदर्शी शाहआलम फिर अंगरेजों की चालों में आ गया 1 शाहआलम ही की मदद से अंगरेजों ने सन १८०४ में मराठों को दिल्ली से निकाल दिया, अपने तईं सम्राट की वफादार और फरमाबरदार प्रजा जाहिर कियासम्राट के निजी ख़र्च के लिए १२ लाख रुपए सालाना का तुरन्त प्रबन्ध कर दिया और राजधानो की सैनिक रक्षा का भार अपने हाथों में ले लिया । उस समय तक भी अंगर दिल्ली सम्राट के देशव्यापी मांन, मराठों और अफ़ग़ानों के बल और अपनी निर्बलता के कारण ले दिल्ली सम्राट और उसके ऊपरी मान को कायम रखना और अपने तई सम्राट की प्रज्ञा ज़ाहिर करना आवश्यक समझते थे । माधोजी सींधिया फ़रज़न्द जिगरबन्द सनहस्स मसरूफ़ सलाअफ्रीए सितमगारि-ए-म ।