पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज.pdf/२८०

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सन् १८५७ की क्रान्ति से पहले

सन् १८५७ की क्रान्ति से पहले १३!! भारत सम्राट और उसके हितचिन्तकों को सबसे पदरा सन्दे अंगरेजों की नीयत के विपय में उस समय सुश्रा कई बरसती की जिस समय कि लॉर्ड बुक्सली ने ८ तब तजवी की कि शादग्राम और उसके दरबार य टिमी के लाल किले से हटा कर मुद्र के किले में तायरा रा । लिखा है कि यूढ़ा शादयालम इस तजवीज़ को सुनते ही फध में भर गया। लॉर्ड चेरुसल्ली को अपनी तजवी के वायग्न ले लेग में ही कुशाल दिखाई दी। किन्तु अनेक दिग्मी निवासियों के चित उसी समय से अंगरेज़ों की जोर से साफ हो गये । टेिलती के अन्दर १८५७ के बिप्लब का एक प्रकार यही बीज्ञापण था । इस के याद ही सन् १८०६ में शाह्मातम की मृत्यु हुई। शाहश्रालम के बाद प्रकबरशाह दिल्ली के तल पर बैठा । इससे पहले लीटम दिल्ली में कम्पनी के रेज़ि- डेण्ट की हैसियत से रहा। करता था1 सीटग ऑफयरशाद जब कभी दरबार में जाता था तो निम्न श्रेणी के एक भारतीय श्रममीर के समान सम्राट के सामने पांकायदा तसलीम, फोरनिश्श ऑौर मुजराकिया करता था और सम्राट -शुक्ल Y के प्रस्येक बच्चे की ग्रोर यथोचित मान दर्शाता था । किन्तु सीटम के बाद चाल्र्स मैटकॉफ रेज़िडेट नियुक्त मुआ। मेटयों ने तुरन्त अपने अंगरेज़ मालिक की भाषा में सम्राट अफघरश थी और अपना व्यवहार बदल दिया और अनेक ऐसी हरकतें करनी शुरू कर दीं जो सम्राट औौर उसके दरबार के लिए अपमानजनक थीं । n e सनाट