पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज.pdf/२८२

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सन् १८५७ की क्रान्ति से पहले

सन् १८५७ की क्रान्ति से पहले लोगों जंगलों के रहते दिल्ली के सम्राट-देने को दिल्ली भैर भविष्य के सम्बन्ध में तरह तरह की गहरी शबाएँ होने लगीं । सम्राट बहाद्रमाद ने भी 'करारनामेकी एक , शर्मा में प्र र सार ग्रपने स्वयं की रकम का बयाना चाहा। स्ट यहाथुर ’ इस बीच दिल्ली ग़ौर उसके पास के अन्तर tह शtर ग्रंगरों के ऊपर कम्पनी का पक्षा कसता जा रहा था, गौर व दिल्ली सम्राट, जो कुछ समय पक्षले समस्त भारत के वज़ाना का मालिक समझा जाता था, अब अपने सद :न्दि और Tयता सहित बड़ी श्रावि कठिनाई के साध दिनी रे, किले के अन्दर दिन बिता रहा था । सम्राट को उत्तर सिंगला कि यदि श्राप अपने और अपने बालों के समस्त रहे सट्टे अधिकार विधिवत् कम्पनी को सौंप दें तो ख़ फी रएम यढ़ा दी जायगी । यहादुरश्रा ने स्वीकार न किया1 दिल्ली के अन्दर अंगरेजों के विरुद्ध प्रसन्तोप के बढ़ने का य यह तीसरा जबरदस्त फारण था। प्रत्येय, ईद फो, नौरोज़ को गौर सम्राट की साल गिरध के दिन गघर नर जनरल गौर कमाण्डरइनी दोनों सम्राट नज़र की सम्राट के दरबार में हाजिर होकर या रेजिडेंट द्वारा सम्राट के सामने नजर पशत किया करते थे। सन् १३७ में बहादुरग्राह के तहत पर बैठने के समय भी ये गए पेश की गई थीं। किन्तु इसके कुछ वर्ष बाद लॉर्ड एलेमयू में गबश्नर जनरल बनत ही इन नजर का पद किया जाम व द य.. दिया । यह मज़र का बन्द किया जाना पूछक्त सन्तोप पर चीer चन्द्र हैं ।