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भारत में अंगरेज़ी राज

१३६२ भारत। में अंगरजी राज प्रम कारण गिना जा सकता है। इसी तरह की और भी अनेक बातों में अंगरेजों ने पद पद पर दिल्ली सम्राट का अपमान करना शुरू । कर दिया । सन् १९३४ में सम्राट बहादुरशाह के पुत्र युवराज दाराबढ़त की मृत्यु हुई । सम्राट उसके बाद बेगम जीनत को जब्बत महल के पुत्र शाहजादे जवाँवद्युत को युवराज युवराज बनाने का नियुक करना चाहता था । सन ५७ में साबित हो गया कि जीनतमहल की योग्यता और सइम शक्ति दोनों असाधारण थीं और जवाँवख्त एक होनहार और खुदवार युवक था । अंगरेज जीनतमहल और उसके पुत्र दोनों के विरुद्ध थे । रेजिडेण्ट और गबरनर जनरल के उस समय के पत्रों से जाहिर है कि वह भविष्य के लिए हिन्दोस्तान के ‘बादशाह ' की उपाधि को हो तोड़ देने की चिन्ता में थे । गवरनर जनरल ने गुप्त लाजिश द्वारा बहादुरशाह के एक दूसरे पुत्र मिरजा फखरू से एक महदनामा लिखवा लिया, जिसमें एक शर्त यह थी कि यदि मुझे युवराज बनवा दिया गया तो तख्त पर बैठते ही मैं, दिल्ली का लाल किला छोड़ करजहाँ अंगरेज कहेंगे वहाँ जाकर रहने लहूँगा। बहादुरशाह को जब इसका पता चला तो उसने एतराज किया । फिर भी कहा जाता है कि बहादुरशाह की इच्छा के विरुद्ध मिरज़ा फ़ख़रू ही के युवराज नियत होने का दिल्ली में एलान कर दिया। यह समय लॉर्ड डलहौजी का समय था। राजधानी के अन्दर अंगरेजों के विरुद्ध गहरे असन्तोष का यह पाँचवा कारण हुआ। के