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भारत में अंगरेज़ी राज

१३६४ भारत में अंगरेज़ी राज फिदवी खास" (बादशाह का विशेष नौकर) ये शब्द रहते थे वे निकाल दिए गए । और हिन्दोस्तानी रईसों को मनाही कर दी गई कि वे भी अपनी मोहरों में बादशाह के प्रति ऐसे शब्दों का उपयोग न करें। इन सब बातों के बाद अन्व गवरमेण्ट ने फैसला कर लिया है कि दिखावे की अब कोई बात भी ऐसी बानी न रक्खी जाय जिससे हमारी गवरमेण्ट बादशाह के अधीन मालूम हो । इस लिए दिल्ली के 'बादशाह' की उपाधि एक ऐसी उपाधि है. जिसका रहने देना या न रहने देना गवरमेण्ट की इच्छा पर निर्भर है। गवरनर जनरल ने शहजादे जवाँवखत के विरुद्ध मिरज़ा कोयाश को युवराज स्वीकार किया। सम्राट को इसकी कोयाश के साथ य सूचना दे दी गई, और मिरज़ा कोयाश से ये तीन शर्ते कर ली गई-(१) तुम्हें 'वादशाह' के स्थान पर केवल 'शहज़ादा' कहा जाया करेगा (२) तुम्हें दिल्ली का किला ख़ाली करना होगा और (३) एक लाख मासिक के स्थान पर तुम्हें १५ हजार रुपए मासिक खर्च के लिए मिला करेंगे। ___ इस समाचार को पाते ही सम्राट बहादुरशाह और दिल्ली निवा- सियों के दिलों में क्रोध की आग भड़क उठी। यह छठा और अन्तिम कारण था जिसने दिल्ली वालों को विप्लव के लिए कटिबद्ध कर दिया, और वे जिस तरह हो, अंगरेजों के पंजे से देश को आज़ाद करने के उपाय सोचने लगे। यह घटना सन् १८५६ की थी। इसके अगले वर्ष हो भारत में इस ओर से उस ओर तक आग लगी हुई दिखाई दी। '* ख्वाजा हसन निज़ामी कृत "देहली की जाँकनी"