पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज.pdf/२८६

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सन् १८५७ की क्रान्ति से पहले

सन् १८५७ की क्रान्ति से पहले १३६५ शव क साथ। बिप्लव दूसरा मुख्य कारण था के का अवध नवाघ श्रीरनयध की प्रजा के ऊपर कम्पनी के अत्याचार, विप्न से केवल एक वर्ष एटले बिना किसी बाह के अत्याचार अवध की समस्त सरतनत के अंगरेजी राक्ष में मिला लिए जाने और नबाब बाघिरली शाद के निर्वासित कर कलकत्ते भेजे जाने का जिक्र पिछले आंध्याय में किया जा चुका है । ' लिखा जा चुका है कि किस प्रकार कम्पनी की सेना ने जबरदस्ती तखनऊ पर कब्जा किया, सेहत को लटा और ग्रेगों या अपमान किया। अबध के मुसलमान नवाघ के अधीन प्रधिकांश बड़े बड़े जमींदार और ताल्लुकेदार हिन्दू थे । इन प्रसंस्य जमींदारों और ताल्लुकेदारों की पैतृक जमींदारियाँ बिना किसी कारण ट्रीग ली गई और उनमें से अनेक को दरबदर झूमने पर चिंघन किया गया । इतिहास लेखक के लिखता है कि यत यम पुराने जमींदार या तालुकेदार इस ग्रन्याय से बच सके 1 तिहास में पता चलता है कि मुंबध के सह ग्राके रतारों किसान गांव बाजिदअली शाह मोर उसके कुटुम्घि की इस चिप सि या दास उन कर रो पड़ते थे और सहनों ग्राम निवासी अपने ग्र चिीत

िजमींदारों और ताल्लुकेदारों से मिल कर उनके साथ सहानुभूति

प्रकट करते थे । नबाव से लेकर चोटे से लोटे किसान तय सय कम्पनी की नई श्रमदारी से दुग्वी थे । कम्पनी की फ़ी के धि कांश हिन्दोस्तानी सिपाही प्रबध ही से लिए जाते थे, इसलिए अवध निवासियों के साथ रकॉर्ड डलहौजी के प्रत्यात्रा में समस्त ।