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भारत में अंगरेज़ी राज

१३६८ भारत में अंगरेजी राज सtथ ग्रन्थय निस्सन्देह इन काररवाइयों ने देश भर के अन्दर लाखों भारत बासियों को अंगरेजों की ओर से दुखी और बेज़ार कर दिया था। . चौथा कारण पेशवा बाजीराव के दत्तक पुत्र सुप्रसिद्ध नाना साहब के साथ कम्पनी का अन्याय था। सन् नाना साहब के १५में अन्तिम पेशवा बाजीराब की मृत्यु . हुई। वाजीराव के राज के बदले में कम्पनी ने सन् १८१८ में उसे “उसके, उसके कुटुम्बियों और उसके आश्रितों के पोषण के लिए’ आठ लाख रुपए सालाना देते रहने का वादा किया था। सन् १८२७ में बाजीराव ने नासा घुन्धपन्त को गोद लिया । नाना की प्रायु उस समय तीन वर्ष की थी । कानपुर के पास बिटूर में पेशबा के साथ उस समय लगभग आठ हज़ार पुरुषस्त्री और बच्चे रहा करते थे । इन सबका पोषण इसी आठ लाख रुपए सालाना की पेनशन से होता था । बाजीराब के मरते ही गबरनर जनरल डलहौजी ने इस पेनशन को बन्द कर दिया ! बाजीराब की मृत्यु के पहले की पेनशम के ६२ हज़ार रुपए कम्पनी की ओर वाले थे । डलहौज़ी ने इसे भी देने से इनकार किया । नाना साहब को यह भी नोटिस दे दिया गया कि विद्र की जागोर भी तुमसे जिस समय चाहें छीन ली जायगी। न ) समस्त अंगरेज़ इतिहास लेखक स्वीकार करते हैं कि इससे पूर्व युवक नाना साहब का व्यवहार अंगरेज़ों के प्रति बहुत ही अच्छा था । सर जॉन के लिखता है कि नाना-- ‘शान्त स्वभाव और आडम्बर रहित युवक था, उसमें कोई भी बुरी