पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज.pdf/२९०

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सन् १८५७ की क्रान्ति से पहले

सन् १८५७ की क्रान्ति से पहले १३६ श्रादत नहीं थी पर यह अंगरेज़ कमिश्नर की सलाह मानने के लिए सट्टा > तैयार रहता था । कानपुर के समस्त ग्रंगरेज और उनकी मे में नाना सख्त्र के महल में जाकर टहग्ती रहती थीं । माना उनकी नाना की खूब ख़ातिर तबाज़ो करता था अंतर चलने मेह नयी समय कीमती दुशाले गौर श्रावण उनी भेंट करता रहता था 1 नाना के हाथी, घोड़े गौर गाड़ियां दा अंगरेजों की सेवा के लिए बड़ी रहती थीं । फिर भी लॉर्ड डलहौजी ने बाजीरात्र के मरसे ही नाना साहब की पेनशन को बन्द कर दिया। नाना ने अपने , कठिनाइयों गौर कम्पनी की कम मिश्रा पीर दर्शाते हुए डलहौज़ी के पास प्रार्थना पत्र भेजा कि पेनझान जारी रक्नी जाय। माना में इनलिस्तान के शासकों से प्रपोल की और प्रपना एक योग्य वकील अज़ोमुल्ताँ ढ़ाँ को प्रस कार्य के लिएबिलग्रत भेजा 1 किन्तु यहाँ पर भी नाना के साथ किसी ने म्याय न किया । सर जॉन के, चार बॉल, बेलियम और मार्टिन चारों प्रसिद्ध नान रेज़ इतिहास ग्ष स्वीकार करते हैं कि न्याय नाना के पक्ष में था। परिणाम यह हुआ कि उसी समय से युवक नाना समय के नियम र में अंगरेजों की जोर से ऋण उत्पन्न हो गई और यद अपने को श्रीर अपने देश को अंगरेजों के पंजे से छुड़ाने की तबीरें सोचने लगा । • "Onist, anothatatious Yout" 122, not at at 5 ...:, ::=' १२० ३० १२, Jagant halbits, and ivariality showi in a इly rist ": १० ११" ई से - : । t:::: । advirt of the rtigh Commissioner."!!::::!" ::4 S: ' (' , 148 ) , Kay, wol. . . 10.