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भारत में अंगरेज़ी राज

१३७० भारत में अंगरेज़ी राज बिप्लब का पाँचवाँ कारण था भारतवासियों को ईसाई बनाने की आकांक्षा और विशेष कर हिन्दोस्तान भारतवासियों को सेनाओं में अंगरेज़ अफ़सरों का ईसाई मत ईसाई बनाने की प्रचार । सन् ५७ के बहुत पहले से अनेक बड़े बड़े अंगरेज़ नीतिज्ञों को भारतवासियों के ईसाई हो जाने में ही अपने राज की स्थिरता दिखाई देती थी । ईस्ट इण्डिया कम्पनी के अध्यक्ष मिस्टर मैर्केल ने सम् १८५७ में ‘पार्लिमेट के अन्दर कहा था -- 'परमात्मा ने हिन्दोस्तास का विशा साम्राज्य इक़लिस्तान को सौंपा है, इसलिए साकि हिन्दोस्तान के एक सिरे से दूसरे सिरे तक ईसा मसीह का विजयी झण्डा फहराने लगे । हममें से हर एक को अपनी पूरी शक्ति इस काम में लगा देनी चाहिएताकि समस्त भारत को ईसाई बनाने के महाम कार्य में देश भर के अन्दर कहीं पर भी किसी कारण ज़रा भी ढील न होने द, 'पाए ‘* यह वाक्य ब्रिटिश भारतीय राजनीति की दृष्टि से उस समय के सब से अधिक ज़िम्मेदार अंगरेज़ नीति का है । उसी समय के निकट एक दूसरे विद्वान अंगरेज़ रेवरेण्ड कैनेडी ने लिखा है हम पर कुछ भी आपत्तियां क्यों न ग्राएँ जब तक भारत में हमारा -- - - ---------------------- - - - - - - - ----- - - - -- - - -

  • " Providence has entrusted the extensive Impire of Hindustan to

England in order that the banner of Christ should wave triamphant from one end of India to the other, very ohe Imust exert all his strength that there may be no dilatoriness on Any account in continuing in the country the grand राwork ol making all ndia Christian. "--Mr. Mangles, Chairman of the Direc- दtors of the East India company, in the house of Commons. 1857,