पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज.pdf/२९२

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सन् १८५७ की क्रान्ति से पहले

सन् १८५७ की क्रान्ति से पहले हैं। साम्राज्य कायम है तब तक हमें यह नहीं भूताना चाहिए कि हमारा मुग्ध - कार्य उस देश में ईसाई सत को फैताना है । जब तक रस कुमारी से लेकर हिमालय तक सारा हिन्दोस्तान ईसा के मत को ग्रहण न कर संने "- विद् और मुसलमान धर्मों की निन्दा न करने लगे तय तक हमें लगातार प्रयरन करते रहना चाहिए । इस कार्य के लिए हम जिसने भी प्रया र से हैं, करने चाहिएँ और हमारे हाों में जितने धिकार फ्री जिीत लगा है, उसका इसी के लिए उपयोग करना चाहिए ।४० इसी तरह के और भो घाघय उस समय के नेफ अंगरे नीतिश, शासकों औौर बिछानों के उस्त किए जा सकते हैं। यद्वी बिचार लॉर्ड मैकॉले के तेलों में पाया जाता है और या एक दर्ज तक ब्रिटिश भारतीय शिक्षा प्रणाली की जड़ में मौजूद हैं। कारण स्पष्ट है। अंगरेज़ नीति इस बात को समझने थे कि किसी जाति को देर तक पराधीन रखने के लिए धार्मिक भों पर उसमें किसी प्रकार का राष्ट्रीय अभिमान या प्रपनी श्रेष्ठता या अपने प्रोनत्य की ग्राम दार विचार नहीं रहने देना चाहिए; और कम से कम उस समय भारत बासियों को सब से अधिक श्रभिमान अपने धर्म का था, धर्म की ग्राघात • w Whatever mister und co hn t:६, ६६ 10: 34 ht:r 1:"१० : 1: :." continues, so lon, et t: 10: oret Alhat our claint vert, t१० १५, १:३९.. or Christianity in the lant until Bindas42, !' " :2:- UI :: १,० : । Himalayas, enttares he relikion of Chtie' d arti i: (२,५००:१५ : - 1!...! and the Mosle teligions, our uus: cott१०११५, ! prts "t । Itwork, Fe atust make all the fort c cat authority 1n bar hatts ; . . . "-Rev. RM:/११, 34. . ! . "