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भारत में अंगरेज़ी राज

२३७२ भारत में अंगरेजी श प्रचार उनकी मुख्य आान थी, इसलिए भारतवासियों को धर्मेच्युत कर देना उनके राष्ट्रीय अभिमान और हौसलों को एंक दीर्घ काल के लिए अन्त कर देना था। अनन्त काल तक उन्हें विदेशी राज के भर और उसकी विनीत प्रज्ञा बनाए रखने का यही सब से अच्छा उपाय हो सकता था 1 मद्रास के गबरनर की हैसियत से लॉर्ड विलियम चेरिट्ज ने जिस प्रकार अपने प्रान्त और विशेष कर वहाँ -मज़हबी जोश के की सेना के अन्दर ईसाई मत प्रचार को साथ ईसाई मत दी का परिणाम सहायता और उत्तेजना उसी सन् १८०६ की बेलोर के सिपाहियों की बगावत थी, जिसका जिक्र ऊपर एक अध्याय में किया जा चुका है । गबरनर जनरल होने के बाद भी लॉर्ड वेरिटस की यह नीति इसी प्रकार जारी रही। सन् १८३२ में एक नया कानून पास किया गया जिसका मतलब यह था कि जो भारतवासी ईसाई हो जाएँउनका अपनी पैतृक सम्पत्ति पर पूर्ववत् अधिकार वना रहे । अंगरेजी राज के स्थापन होने के साथ साथ असंख्य प्राचीन मन्दिरों और मस्जिदों की माफी की जागीरें छिन गई। कैदियों के लिए जेल ख़ाने में अपने धर्म का पालन कर सकना असम्भव कर दियां गया। लॉर्ड डलहौज़ी ने भारतवासियों की गोद लेने की प्राचीन धार्मिक प्रथा को नाजायज करार दियाऔर भी अनेक इस तरह के कार्य किए गए जो भारतवासियों के धार्मिक नियमों और उनके धार्मिक रस्म रिवाज के स्पष्ट विरुद्ध थे। स्वयं लॉर्ड निफ्रे ने