पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज.pdf/२९६

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सन्१८५७ की क्रान्ति से पहले

सन् १८५७ की क्रान्ति से पहले १३७५ शासकों की यश नीति इस खुले रूप में देर तक न बन सकी, फिर ईसाई धर्म प्रार के पक्ष में प्रया गयर जारी फ्रज में ईसाई रहे । धीरे धीरे इन धमेंन्मल शासकों मत प्राचार का ध्यान हिन्दोस्तानी सिपाहियों की ओर गया 1 इतिहास लेखक नॉलम लिखता है कि अंगरेज़ उमर फार सिपाहियाँ के धार्मिक भावों की अवहेलना करने लगी प्रांर योग यात में उनक धार्मिक नियों याटिक का उल्लंघन किया जाने लगा । यहाँ तक कि कम्पनी को सेना के अनेक अंगरेज अफ़सर खुले तौर पर अपने सिपाहियों का धर्म परिवर्तन करने के कार्य में लग गए । बद्दाल की पैदल सेना के एक अंगरेज यमरा में अपनी सरकारी रिपोर्ट में लिगा है कि “में लगातार २८ बं' में । भारतीय सिपाहियों को ईसाई बनाने की नीति पर अमन यरा रहा , और गैर ईसाइयों की श्रात्माों को तान से बचाना मेरे फ़ोतो कर्तव्य का एक श्र रहा है ।’ ‘फॉचेज ग्रॉ . दी इडियन रिवोल्ट" नामक पत्रिका का भारतीय रचयिता लिग्नता है ‘सन् १८५७ के शुरू में हिन्दोस्तानी सेना के यस से परम्र गई है। ईसाई पनाने के प्रयन्त घर तथा दुष्कर कार्य में लाते हुए पाए गए है उसके X याद यह पता चलता कि हम जोशीले अफसरों में से अनेक मैं हैं मैंग हो। के ख़याल से फ़ौज में भरती हुए थे, न इसलिए भरती हुए थे कि प्री . का कार्य उनकी प्रकृति के घरयन्त अनुकूल थे, यदि र उनका पान सीट पर एक मात्र उद्देश्य यही था कि इस रिये से लोगों को ईसाई बनाया जाय । फ़ को उन्हें खास तौर पर इसलिए शुमा बकि शानिश के दिन में