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भारत में अंगरेज़ी राज

१३७६ भारत में अंगरेजी राज प्र- लौज के अन्दर सिपाहियों और अफसरों दो—ों को हद दरजे की फुरसत रहती है, और वहाँ पर बिना , परिश्रम इम्यादि के या बिना गाँव गाँच भटकने के इर तरफ़ बहुत बड़ी संख्या में गैर ईसाई मिला सकते हैं ।” x इन लोगों ने हिन्दू और मुसलमान अफ़सरों और सिपाहियों में प्रचार करना और उनमें ईसाई पुस्तकें के अनुवाद और पत्रिकाएँ बाँटना शुरू किया। शुरू में सिपाहियों ने कभी घुणा के साथ गौर कभी उदासीनता के साथ यह सब बरदाश्त कर लिया है किन्तु जब इन लोगों का कार्य बरबर जारी रहा, जब इनके ईसाई बनाने के प्रयन दिन प्रति दिन अधिकाधिक गहरे और क्लेशकर होते गए, तो दोः धों के सिपाही चौंक उठे ।x इस अरसे में ये विचित्र अफ़सर जिन्हें ‘मिशनरी करनत’ और पादरी लेफ्टेनेट कहा जाने लगा था, चुप न बैठे 1 सिपाहियों की सहनशीलता से इनका साहस और बढ़ गया और वे पहले की अपेक्षा और अधिक जोश दिखलाने . तगे। हिन्दू धर्म और इसलाम की यह पहले से अधिक जोरदार शब्दों में , निम्दा करने लगे ( पहले से यधिक जोश के साथ वे इन अविश्वासी लोगों पर जोर देने लगे कि आपने तेंतीस करोड़ कुरूप देवी देवताओं को छोर का उनकी जगह एक सच्चे परमामा की, उसके बेटे ईसा के रूप में पूजा कसे मोहम्मद और रTम को अभी तक वे केवल ऐसे वैसे समुष्य कहा करते थे अब वे उन्हें बड़े दगाबाज़ और पक्के धूर्त बतलाने लगे 1” धीरे धी इन धर्म प्रचारक करनतों ने सिपाहियों को रिशवतें दे देकर उन्हें इंसा बनाना शुरू किया, और ईसाई बनने वालों को तरक्की तथा दूसरे इन का भी वांलच दिया । इस नापाक काम में उम्होंने निर्लज्जता के साथ आर आफ़सरी के प्रभाव का उपयोग किया है सिपाहियों ने. ऐतर कियाउन