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भारत में अंगरेज़ी राज

१३० भारत में अंगरेजी राज अपने भारतीय सिपाहियों के साथ कम्पनी और कम्पनी के अफसरों का सामान्य व्यवहार भी बहुत अच्छा सैनिकों के प्रति न था। सामानवेतनरहने के मकान इत्यादि सामान्य व्यवहार के विषय में सिपाहियों की ओर से अनेक शिकायतें बार बार की जा चुकी थीं, किन्तु उन पर यथोचित श्याम कभी न दिया गया था। परिणाम यह हुआ कि हिन्दोस्तानी सिपाहियों के दिल अंगरेजों की घोर से भीतर ही भीतर असन्तोष और क्रोध से भर गए । सन् १५७ की क्रान्ति का यह पाँचवाँ और एक तर सबसे जबरदस्त कारण था । पूत पांचो कारणों ने मिलकर समस्त भारत के अन्दर अंगरेजी राज के विरुद्ध हर श्रेणी के लोगों में चिनगारी की । जबरदस्त स्फोटक सामग्री जमा कर रक्खी प्रतीक्षा थी। केवल किसी ऐसे योग्य नेता की आब श्यकता थी जो इस सामग्री से लाभ उठा कर समस्त देश को स्वाधीनता के एक महान संग्राम के लिए तैयार कर सके और सौ ' वर्ष से जमे हुए विदेशी शासन को उखाड़ कर फेंक सके ’ या कोई अकस्मात् चिनगारी इस मामले पर पड़ कर देश में एक भयहर आग लगा दे, परिणाम फिर चाहे कुछ भी क्यों न हो। सन् १८५७ की क्रान्ति वास्तव में भारत के हिन्दू और मुसलमान and of India are to be held as the tests of their respective creeds, India would not loose by the comparison"-Malcol Legin in the Preface to Cast of । aian Recog