पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज.pdf/३०२

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सन् १८५७ की क्रान्ति से पहले

सन १८५७ की क्रान्ति से पहले नरेश और भारतीय जनता की ओर से देश को विदेशियों की राजनैतिक प्रधीनता से मतयगाने या ए. क्रान्ति का संचाँ रूप । महान श्रीर व्यापक प्रयन था । लन्दन ‘टाइम्स' का विशेष प्रतिनिधि सर विलियम देव । रसलजो , ५७ की क्रान्ति के समय भारत में मीजूद था, उस बिप्लब के विषय में लिखता है घद ऐसा युद्ध था जिसमें लोग अपने धर्म के नाम पर, अपनी टीम से नाम पर, यदला लेने के लिए गौर अपनी श्राशा की 'रा करने के लिए उठे थे । उस युद्ध में समस्त राष्ट्र ने आपने उपर से विदेशिों में जुए हैं। फेंक कर उसकी जगह देशी नरेश की पूर्ण सा पूर देश धों या पूरी श्रधिकार फिर से प्रायम करने का सब्रप कर लिया था । इस राष्ट्रीय प्रयत्न की तह में एक उतनी ही गहरी योजना और उतना ही व्यापक श्रौर गुप्त सझठन भी था। फ्रान्ति की योजना क "" जहाँ तक मालूम हो सकता है, इस निशान का सूत्रपात योजना का सूत्रपात दोनों में से किसी पर स्थान पर लुटा-कानपुर के निकट विर में या इलिस्तान को राजधानी लन्दन में 1 अन्तिम पेशवा बाजी घ का दल पुत्र नाना साहेब धुन्धपन्ना में • " . . . . . w P hai 4 ANet ! telietnt, A wr ht r 27, 2, 3 -३१ !! rewweot bope, ot latinhat informatio to shar of t wwक : - strator an to establish the filll Unwer f 12tive C:at . : १। t: 6-4

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