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भारत में अंगरेज़ी राज

सकता है, उससे पता चलता है कि सन् १८५६ से कुछ पहले नाना साहब विर से बैठे हुए भारत भर में चारों और अपने गुप्त दूत और प्रचारक भेजने शुरू कर दिए । नाना के विशेष दूत टिमुरली से लेकर मैसूर तक समस्त भारतीय नरेशों के द्वारों में पहुंचे और उसके गुप्त प्रचारक कम्पनी की समस्त देशी फौजों तथा जनता को अपनी ओर करने के लिए निकल पड़े। को गुप्त पत्र नाना ने इस समय भारतीय नरेशों को लिखे उनमें उसने दिखताया कि किस प्रकार अंगरेज एक एक देशी रियासत को हड़प कर समस्त भारत को पराधीन करने के प्रयतों में लगे हुए हैं। कुछ समय बाद अंगरेजों ने नाना के एक दूत को पकड़ा जो मैसूर द्रबार के नाम माना का पत्र लेकर गया था। इसी दूत से अंगरेजों को पता लगा कि इस प्रकार के कितने ही पत्र नाना श्रनेक नरेशों

को भेज चुका था । इतिहास लेखक सर जॉन के लिखता है-

महीनों से बल्कि वर्षों से ये लोग समस्त देश के ऊपर अपनी साजिशों का जाल फैला रहे थे । एक देशी दरबार से दूसरे दरबार तक, विशाल भारतीय महाद्वीप के एक सिरे से दूसरे सिरे तक, नाना साहब के दूत पत्र लेकर घूम चुके थे, इन पत्रों में होशियारी के साथ और शायद रहस्यपूर्ण शब्दों में भिन्न भिन्न जातियों और भिन्न भिन्न धर्मों के नरेश और सरदारों को सलाह दी गई थी और उन्हें आमन्त्रित कियां गया था कि आप लोग आगासी युद्ध में भाग लें ।

  • +or months, for years inneed, they had been spreading their net

wिork of intrigues all over the country, For one native court to another,