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भारत में अंगरेज़ी राज

१३८८ भारत में अंगरेजी रा लखनऊ का निर्वासित नवाब बाजिशली शाह, उसका होशिी यार वज़ीर अली नक़ी खाँ, अवध के समस्त ताल्लुकेदार, ज़मींदार . और वहाँ की समस्त प्रजा अब इस राष्ट्रीय बिप्लब की सफलता पर अपना सर्वस्व न्यौछावर कर देने के लिए तैयार होगई। बाजिदअली शाह की बेगम हजरत महल और बजीर अली नक्रो खाँ दोनों की गणना क्रान्ति के मुख्य प्रवर्तकों में की जाती है। वज़ीर अती नकी ख़ ने कलकत्ते से बैठ कर मुसलमान फ़क़ीरों और हिन्दू साधुओं के रूप में अपने गुप्त दूत उतरीय भारत की तमाम देशी फौजों में भेजने शुरू किए और उन फौजों के भारतीय अफसरों के साथ गुप्त पत्र व्यवहार प्रारम्भ किया । बेगम हज़रत सहल ने अवध के तमाम रईस और जनता को राष्ट्रीय विप्लव के लिए तैयार करना शुरू किया । इतिहास लेखक क के लिखता है कि अली नफ़ी ख़ाँ के निमन्त्रण पर हज़ारों हिन्दू सिपाहियों और उनके अफसरों ने गद्दाजल लेकर और मुसलमानों ने कुरान हाथ में लेकर राष्ट्रीय संग्राम में भाग लेने और अंगरेजों को देश से बाहर निकालने की शपथ खाई । इस विशाल स्रइटम के लिए धन की कमी न थी। सहस्त्रों रईसों और साहूकारों ने अपनी थैलियाँ राष्ट्रीय है। क्रान्ति में धन की नेताओं के कदमों पर रख दीं । बैरकपुर से पेशा बर तक और लखनऊ से सतारा तक हजारों राष्ट्रीय फ़क़ीर और सन्यासी घूम घूम कर एक एक ग्राम और एक पक पलटन में स्वाधीनता के युद्ध का प्रचार करने लगे । सहायता