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भारत में अंगरेज़ी राज

१३४२ भारत में अंगरेजी राज प्रचारक अहमद शह पूरे प्रयत्न करता रहता था । इसके बाद कालपी इत्यादि होते हुए नाना अप्रैल के अन्त में विधुर वापस आ गया । रसत लिखता है - कि अपनी इस यात्रा में नाना और अज़ीमुल्ला रास्ते की समस्त अंगरेज़ी छावनियाँ में होते जाते थे। विप्लव के उन सहस्त्रों प्रचारकों में, जिन्होंने घूम घूम कर जन सामान्य के दृश्यों को अपनी ओर कियासबसे क्रान्ति का । मुख्य मख्य नाम जावाद के पक ज़तदार मौलबी ' अहमदशाह का है । लखनऊ और आगरे के शहरों में दस दस हज़ार आदमी मौलबी अहमदशाह का व्याख्यान सुनने के लिए जमा होते थे। हिन्दू और मुसलमान अपनी सौ वर्ष की पराधीनता की कहानी सुन कर मौलवी में अहमदशाह के व्याख्यानों से यह शपथ खाकर उठते थे कि हम लोग आगामी स्वाधीनता के संग्राम में अपने प्राणों की बाज़ी लगा देंगे। मौनबी अहमदशाह का वृतान्त आगे चल कर दिया जायगा । सन् ५७ के इस अद्भुत संगठन का वर्णन समाप्त करने से पहले दो और चीजों को बयान करना आवश्यक है। क्रान्सि के चिन्ह विप्लब के नेताओं ने श्रपने संगठन के दो मुख्य कमल और चपाती चिन्ह नियत किए—एक कमल का फूल और दूसर चपाती। कमल का फूल उन समस्त पलटनों में, जो इस संगठन में शामिल थीं, घुमाया जाता था 1 किसी एक पलटन का

सिपाहो फूल लेकर दूसरी पलटन में जाता था। उस पलटन भर में

हाथों हाथ वह फूल सब के हाथों से निकलता था। जिसके हाथ