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भारत में अंगरेज़ी राज

१३४६ भारत में अंगरेज़ी राज पलटनों में उन्हें प्रचलित किया गया 1 भारतीय सिपाहियों ने अज्ञात के कारण कई जगह नए कारतूसों को दत से काटना स्वीकार कर, लिया। धीरे धीरे नए कारतूसों का इस्तेमाल बढ़ाया गया । बैरकपुर के पास इन कारतूसों के बनने के लिए एक कारखाना खोला गया । एक दिन दमदम का एक ब्राह्मण सिपाही पानी का लोट हाथ में लिए वारग को ओर जा रहा था। अकस्मात् एक मेहतर ने आकर पानी पीने के लिए सिपाही से लोटा माँगा। सिपाही ने हिन्दू प्रथा के अनुसार लोटा देने से इनकार किया। इस पर मेहतर ने कहा-‘तुम अब जात पाँत का घमण्ड न करो ! क्या तुम्हें मालूम नहीं कि शीघ्र हो तुम्हें अपने दाँतों से गाय का मांस और खुश्रर की चरवी काटनी पड़ेगी १ जो नएंकारतूस बम रहे हैं उनमें जान बूझ कर ये दोनों चीजें तगाई जा रही हैं।” ब्राह्माण सिपाही इसे सुनते ही क्रोध से भर कर छावनी में गया । जब दूसरे सिपाहियों ने यह समाचार सुना तो वे भी क्रोध से लाल होगए। वे सोचने लगे कि अंगरेज सरकार इस प्रकार जान बूझ कर में धर्म भ्रष्ट करना चाहती है । उन्होंने अपने अंगरेज अफसरों से पूछा । अफसरों ने उन्हें स्पष्ट उत्तर दिया कि यह अफ़वाह बिलकुल झूठी है और नए कारतूसों में इस तरह की कोई चीज नहीं है । सिपाहियरें को विश्वास न हुआ, उन्होंने बैरकपुर के कारखाने में काम करने वाले छोटी जाति के हिन्दोस्तानी मज़दूरों से पता लगाया । उन्हें पता लगा कि वास्तव में नए कारतूसों के अन्दर दोनों चीजें, जो हिन्दू और मुसलमान धर्मों में निषिद्ध है, लगाई ।