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भारत में अंगरेज़ी राज

१३४८ भारत में अंगरेजी राज “इसम कोई सन्देह नहीं कि इस चिकने मसाले के बनाने में गाय की चरथी का उपयोग किया गया था । सर जॉन के यह भी लिखता है कि दिसम्बर सन् १८५३ में करनल टकर ने बहुत साफ़ शब्दों में इस बात को लिखा था कि नप करतूसों में गाय और सुअर दोनों की चरधी लगाई जाती थी। दमदम के कारखाने में जिस ठेकेदार को कारतूसों के लिए चरवी का ठेका दिया गया था उससे ठेके के काग़ज़ में यह साफ़ शब्दों में लिखा लिया गया था कि ‘मैं गाय की चरखी लाकर हूँगा" औरचरबी का भाव चार आने सेर रखा गया था। लॉर्ड रॉब- इंस नेजो इस क्रान्ति के समय भारत में मौजूद था, लिखा है , ‘मिस्टर फ़ॉरेस्ट ने भारत सरकार के काग़र्ज़ों की हाल में जाँच की है, उस जाँच से साबित है कि कारतूसों के तैयार करने में जिस चिकने मसाले का उपयोग किया जाता था वह साला वास्तव में दोनों निषिद्ध पदार्थों .अर्थात् गाय की चरबी और सुअर की चरबी को मिला कर बनाया जाता था, है और इन कारतूसों के बनाने में सिपाहियों के धार्मिक भाों की ओर इतनी बेपरवाही दिखाई जाती थी कि जिसका विश्वास नहीं होता है; • "There is no queton that beef Mat शay used in the composition of ) this tallow. "-Kaye's alian lettyvol. i, p, 381. + “The recent researches of M. orrest in the records of the Govern ment of India prove that the lubricating Imixture used in preparing the cartridges was ctually composed of the objectionable ingredients, cows' at and lard and that incredible disregard of the soldier's religious projudices was displayed in the manufacture of these cartridges. "-Forty Yaw in bacia by Lord Roberts, p. 431.