पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज.pdf/३२

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भारतीय शिक्षा का सर्वनाश

भारतीय शिक्षा का सर्वनाश ११३९ हमारा उसी मूर्खता को दोहराना ठीक नहीं है ।’’ हैं x इसके बीस वर्ष याद तक यानी सन् १८१३ तक भारतवासियों को शिक्षा देने के विरुद्ध येः ही भाव इंगलिस्तान के शासकों के दिलों में कायम रहे ।"# सन् १८१३ में शिकायत के अन्दर सर जॉन मैलकम ने, जा उम विशेष अनुभवी नीतिज्ञों में से था, जिन्होंने जाति पाँति से १8 वीं सदी के शुरू में भारत के अन्दर अंगरेज़ी अंगरेज़ को लाभ यंगरेजों की जान साम्राज्य को विस्तार दिया, पालिमेण्ट की जाँच ’ कमेटी के सामने गवाही देते हुए कहा- ‘* मैं इस समय हमारा साम्राज्य इतनी दूर तक फैला हुआ है। कि जो पसाधारण ढ की हुकूमत हमने उस देश में कायम की है उससे धने रहने के लिए केवल एक बात का हमें सहारा है, वह यह कि जो बड़ी बड़ी जातियाँ इस समय अंगरेज़ सरकार के अधीन हैं वे सब एक दूसरे से नहग अलग हैं, और जातियों में भी फिर ने जातियों और उप जातियां हैं, जब तक ये लोग इस तरह एक दूसरे से बचे रहेंगे, तब तक कोई भी बलवा हमारी सत्ता को नहीं हिला सकता ।x x mजितना जितना लोगों में एकता पैदा होती जायगी और उनमें वह बल आता जायगा जिससे वे ।

  • + On that occasion, one of the Directors stated that we had just los

schools and America from aur folly, in having allowed the establishnent of colleges, and that it would not do for us to repeat the same act of folly in regard to India . . . . For twenty years after that period, down to the year 1813the same fecling of opposition to the education of the natives conti nued to prevail among the ruling authorities in this country 6. C. Marshman15th Jane, 1853Ibtd