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१४०४
भारत में अंगरेज़ी राज

१४०४ भारत में अंगरेजी राज क्रान्ति के सश्चालकों की आशा का ध्यान रखते हुए ३१ मई से पहले विप्लव की कोई काररवाई नहीं की । शीघ्र यह समाचार भी समस्त - । उत्तरीय भारत में फैल गया । यह बात तय हो चुकी थी कि क्रान्ति प्रारम्भ करने से पहले हर जगह अंगरेजों के छंगलों और चार में आग लगा दी जाय। अप्रैल के महीने में लखनऊ, मेरठ और 'अम्वाल में अनेक अंगरेजों के मकान जला दिए गए । अफसरों ने इन आकस्मिक घटना के अपराधियों का पता लगाने का भरसक ‘प्रयल किया है किन्तु पुलिस भी कान्तिकारियो के साथ मिली हुई थी, इसलिए कुछ पता न चल सका। इसके बाद मई का महीना आया । ६ मई सन् १८५७ को मेरठ में परीक्षा के तौर पर ३० हिन्दोस्तानी सवारी मेरठ की घटना कम्पनी को नए चरखी लगे कारतूस कई एक दिए गए । सवारों से उन्हें ट्राँत से काटने के लिए कहा गया । १० में से ८५ सवारों ने साफ इनकार कर दिया । इन सिपाहियों ‘का कोर्ट मार्शल हुआ । आशा न मानने के अपराध में उन सबकी आठ आठ और दस दस साल की सख्त कैद की सज़ा दी गई। 8 मई को सवेरे इन =५ सिपाहियों को परेड पर लाकर रखड़ा किया गया। उनके सामने गोरी फ़ौज और तोपख़ाना 7 था। छावनी के शेष समस्त हिन्दोस्तानी सिपाहियों को भी यह दृश्य दिखाने के लिए परेड पर बुला लिया गया । E८५ अपराधियों से उनकी वाद्य उतरवा ली गई, और वहीं परेड पर खड़े खड़े उनके हथकड़ियाँ और बेड़ियां डालत दी गई । उनसे कहा