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चरबी के कारतूस और क्रान्ति का प्रारम्भ

चरबी के कारतूस और क्रान्ति का प्रारम्भ १४०७ अंगरेजों के लिए वरकत और भारतीय क्रान्तिकारियों के लिए हानिकर साबित हुआ 1 मालेन स्पष्ट लिखता क्रान्तिकारियों का है कि यदि पूर्व निश्चय के अनुसार एक साथ दिल्ली में प्रवेश एक तारीख को ही समस्त भारत में स्वाधीनता का संग्राम का युद्ध होता, तो भारत में एक भी अंगरेज़ ज़िन्दा न बचता और भारत में अंगरेजी राज का उसी समय अन्त होगया होता 10 । जे० सी० बिलसन लिखता है के वास्तव में मेरठ शहर की स्त्रियों ने वहाँ के सिपाहियों को समय से पहले भड़का कर अंगरेज़ी रा को गारत होने से बचा लिया ।* फिर भी मेरठ में बगावत शुरू होते ही भारत में इस सिरे से उस सिरे तक एक प्रचण्ड याग भड़क उठी । दो हज़ार सशक हिन्दोस्तानी सवार मेरठ से चल कर ११ मई को आठ बजे सवेरे दिल्ली पहुँच गए । दिल्ली के नेताओं को उनके नाने का पहले से पता था किन्तु अंगरेजों को इसका गुमान तक न था 1 दिल्ली में कम्पनी की फ़ौज का अंगरेज़ अफ़सर करनल रिपले समाचार पाते ही ५४ नम्बर की देशी पलटन को जमा करके मेरठ के विद्रोहियों का मुक़ाबस्ता करने के लिए T बढ़ा 1 आमना सामना होते ही जिस समय मेरठ के सवारों ने ‘अंगरेज़ी राज की क्षय !' और 'सम्राट बहादुरशाह को जय !' बोली, दिल्ली के सिपाही तुरन्त बजाय हमला करने के, नागे बढ़

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