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भारत में अंगरेज़ी राज

१४०८ भारत में अंगरेज़ो रा ! कर अपने मेरठ के भाइयों के साथ गले मिलने लगे । करनल रिपले घबरा गया और तुरन्त वहीं पर मार डाला गया । दिल्ली की सेना के सब अंगरेज़ अफ़सर मार डालेगए । संयुक्त सेना ने काशमीरी दरवाजे से दिल्ली में प्रवेश किया ।दरियाग के तमाम अंगरेज़ी बैंगले जला दिए गए। दिल्ली के किले पर तुरन्त क्रान्तिकारियों का कब्जा हो गया। सम्राट बहादुरशाह और बेगम जीनतमहल ने सोचा कि अब ३१ मई तक ठहरे रहना मूर्खता होगी। इतने में मेरठ की पैदल सेना और तोपखाना भी दिल्ली पहुँच गया । मेरठ के तोपखाने ने लाल किले में घुसते ही सम्राट बहादुर शाह के नाम पर २१ तोपों की सलामी दी। चार्ल्स बॉल लिखता है कि सेना के भारतीय अफसरों ने सम्राट बहादुरशाह को जाकर सलाम किया और मेरठ का सब हाल कह सुनाया। इन अफसरों में हिन्दू और मुसलमान दोनों शामिल थे । मेटकॉफ़ लिखता है कि सम्राट ने उनसे कहा कि-मेरे पास कोई ख़ज़ाना नहीं है, मैं श्राप लोगौं को तनख़ाई कहाँ से गूंगा ” सिपाहियों ने उतर दिया -हम लोग हिन्दोस्ताम भर के अंगरेज़ी ख़ज़ाने ला लाकर श्रापके कदमों पर डाल देंगे ।" बूढ़े सम्राट ने स्वाधीनता संग्राम का नेतृत्व स्बोंकार कर लिया और समस्त ज़िला सम्राट की 7 जयनि से गूंज उठा ! दिल्ली के सहलों नगरनिबासी क्रान्तिकारियों के साथ मिल गए । जो अंगरेज़ जहाँ मिला उसे वहीं समाप्त कर दिया गया। लिखा है कि जिस समय मेरठ की फ़ौज दिल्ली पहुँची तो दिल्ली के