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भारत में अंगरेज़ी राज

९४१० भारत में अंगरेज़ी राज हिन्दोस्तानी सिपाही और आस पास की गलियों में क़रीब ३०० और नगर निवासी टुकड़े टुकड़े होकर उड़ गए। वन्दू सय क्रान्ति- कारियों के हाथ आई और प्रत्येक सिपाही को चार चार बन्दूकें मिल गई। छावन के अन्दर सब अंगरेज अफसर मार डाले गए । शहर के अन्दर अंगरेजों का क़रले आम ११ मई से १६ मई तक जारी रहा । इस बीच सैकड़ों अंगरेज़ जान बचा कर दिल्ली से भाग निकले। अनेक ने अपने मुंह काले कर लिए और हिन्दोस्तानी फकीरों के से कपड़े पहन लिए। अनेक गरमी से औौर मार्ग की कठिनाई से मर गए और अनेक को आस पास के गाँव वालों ने खत्म कर दिया । कुछ को रहमदिल ग्राम वाली ने आश्रय दिया और अपने यहाँ छिपा लिया । १६ मई सन् १८५७ को भारत को प्राचीन राजधानी दिल्ली पूरी तरह कम्पनी के हाथों से आजाद हो गई दिल्ली की स्वाधीनता और सम्राट बहादुरशाह फिर से दिल्ली का क्रियात्मक सम्राट गिना जाने लगा। निस्सान्देह शेष भारत पर इसका बहुत जबरदस्त प्रभाव पड़ा । नाना साहब और क्रान्ति के अन्य नेताओं ने बहादुरशाह ही के नाम पर समस्त भारत के नरेश8 सैनिकों और प्रजा को अंगरेजों के विरुद्ध युद्ध के लिए आह्वान थे। किया था । बहादुरशाह का झण्डा ही उस समय भारत भर के क्रान्तिकारियों का झण्डा था। यह एक बात ध्यान देने योग्य है कि यद्यपि मेरठ, दिल्ली और उसके आस पास के ग्रामों में उन दिनों एक एक अंगरेज को चुन