पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज.pdf/३३६

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चरबी के कारतूस और क्रान्ति का प्रारम्भ

चरवी के कारतूस औौर क्रान्ति का प्रारम्भ १४१३ यही हालत इटावे की हुई । इटाखे क के कलेक्टर मि० हम ने पुलिस और जनता से मदद चाही । किन्तु इन इटावे की दो में खुले क्रान्तिकारियों का साथ दिया। स्वाधीनता असिस्टैएंट मैजिस्ट्रेट डेनियल लड़ाई में मारा गया 1 २३ मई को हिन्दोस्तानी सिपाहियों ने ख़ज़ाने पर क़ब्ज़ा । कर लिया, जेलखाने को तोड़ दिया, अंगरेज़ों को अपने बच्चों और स्त्रियों भाग जाने का मौका दिया। लिखा है कि शूम साहब समत पक भारतीय स्त्री का रूप धारण करके इटाबे से निकल भागे ।। शहर में स्वाधीनता का ढिंढोरा पीट दिया गया । इस प्रकार है नम्बर पतटन के समस्त सिपाही अलीगढ़बुलन्दशहूर, मैनपुरी इटावा और पास पास के इलाके को स्वाधीन करके कम्पनी के. ख़ज़ाने पर क़ब्ज़ा करते हुए, अंगरेजों की जान बख्शते हुए, रसद और हथियार साथ लेकर दिल्ली को ओर चल दिए। इन नगरों के शासन का प्रबन्ध नगर निवासियों को सौंप दिया गया। अजमेर के निकट नसीराबाद में कम्पनी की एक पलटन देशी पैदत की, एक कम्पनी गोरों की और कुछ नसीरयाद में तोपढ़ाना रहा करता था। मेरठ के सिपाही इस क्रान्ति समग्र दूर दूर तक फैल गए थे जिनमें से कुछ नसीराबाद में भी पहुँचे । २८ मई को वहाँ की हिन्दोस्तानी सेना विगड़ी। गोरों की कम्पनी से उनका संग्राम हुआ । कुछ अंगरेज़ मारे गए और शेष जान घचा कर भाग गये । देशी सिपाहियों के " TC & an66, Part i, ' 0.