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चरबी के कारतूस और क्रान्ति का प्रारम्भ

चरबी के कारतूस और क्रान्ति का प्रारम्भ 'बदली शिकस्त दी है उससे वे इतने घबरा गए हैं जितने किसी दूसरे मौके • पर दस शिकस्तों से भी न घबरते । बेशुमार हिन्दोस्तामी यहडूर दिखती में आा आकर जमा हो रहे हैं। ऐसे मौके पर अगर श्राप बहों पर खाना खा रहे हैं तो झाथ यहाँ प्राकर घोइए । शाहों का बादशाह, जहाँपनाह, हमारा दिल्ली का शाइन्शाह प्रापका इस्तकबाल करेगा और आपको विदमत का सिला देगा 1 हमारे कान इस तरह से वापसी ओोर लगे हुए हैं जिस तरह रोजेदारों के कान प्रज्ञान देने वाले की पुकार की ओर लगे रहते हैं। हम आपकी सोरों की छाया सुनने के लिए बेचैन हैं। हमारी आंखें प्रापके दीदार की प्यासी उसी तरह सड़क पर लगी हुई हैं जिस तरह का संद की आंखें लगी रहती हैं । प्राइए ! प्रापका फर्ज है कि फ़ौरन् प्राइए । हमारा घर आपका घर है ! भाइयी ! श्राइए, बिना प्रापकी आमद की घदार के गुलाब के फूल नहीं पा सकते ! बिना यारिश के करती नहीं खिल सकती ! बिना दूध के बच्चा नहीं जी सकता है। फिर भी बरेली के नेता ख़ानबहादुर खाँ ने पूर्व योजना के अनुसार ३१ मई तक प्रतीक्षा करने का निश्चय पूर्व योजना का का किया। ख़ानबहादुर ख़ाँ और बरेली की समस्त निश्चय देशी पलटन का व्यवहार अंगरेज़ों के साथ r इतना सुन्दर रहा कि अंगरेजों को प्रधत समय तक उनकी बफ़ादारी में सन्देह न होने पाया । ठीक ३१ मई को सवेरे सब से पहले कप्तान ब्राउनलो का बँगला - से - सा से माता का नाम का एक के सेक्स के साथ अब तक के का • Warraftrt of tit Indian Repl, 2. 33.