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भारत में अंगरेज़ी राज

१४१६ भारत में अंगरेजी रजिस भण्डा जताया गया । ठीक ग्यारह बजे दोपहर को अचानक एक तोप फुटी है। यही क्रान्ति के शुरू होने का चिन्ह था । बरेली , बरेली में का संगठन बड़ा अच्छा था । ६८ नम्बर पलटन स्वाधीनता का ने अंगरेजों के बँगल में आग लगाना और अंग रेजों को मारना शुरू कर दिया 1 अंगरेज़ नैनीताल की ओर भागने लगे । जनरल लिवड और अनेक अन्य अफसर मार गए । कवल ३२ अंगरज जाम वच |ा कर नैनीताल पहुँचे। घण्टे के अन्दर बरेली के ऊपर स्वाधीनता का हरा झण्डा फहराने लगा । जिस समय अंगरेज़ी झएडा उतार कर उसकी जगह हरा झण्डा लगाया गया उसी समय तोपखाने के सूबेदार बख़्त ख़ाँ ने बिप्लवकारी सेनाओं का प्रधान सेनापतित्व ग्रहण किया। इतिहास लेखक चाल्र्स वॉल लिखता है कि बख्त खाँ ने सिपाहियों को उपदेश दिया कि स्वाधीनता प्राप्त करने के बाद तुम्हें शान्ति और न्याय का व्यवहार करना चाहिए । समस्त प्रज्ञा ने खानबहादुर खाँ को सम्राट की ओर से रुहेलखण्ड का सूबेदार स्वीकार किया है। उसी दिन सूर्यास्त से पहले पहले ख़ानबहादुर खाँ की ओर से एक दूत सम्राट को रुहेलखण्ड की स्वाधीनता की सूचना देने के लिए दिली की ओर रवाना हो गया। बरेली से ४७ मील दूर शाहजहाँपुर में २८ नम्बर पैदल पलटन थी। ठीक बरेलो ही के समान शाहजहाँपुर भी शाहजहांपुर इस पलटन के प्रयनों द्वारा ३१ मई की शाम तक की स्वाधीनता स्वाधीन हो गया ।