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भारत में अंगरेज़ी राज

भारत में अंगरेज़ी राज को इस लोक में और परलोक में दोनों जगह निजात मिलेगी ! लेकिन अगर कोई इस मुक्की जने की मुख़ालफ़त करेगा तो वह अपने सर पर कुल्हाड़ी में मारेगा और .खुदकुशी के गुनाह का जिम्मेवार होगा !' बगेलो, शाहजहाँपुर, मुरादाबाद और बदायूं से कम्पनी की समस्त हिन्दोस्तानी सेना कपनी के ख़ज़ानों, बढ़त दिल्ली तोपों और अन्य हथियारों सहित बख़्त ख़ाँ के की ओर नेतृत्व में राजधानी दिल्ली की ओर रवाना हो गई । मनबहादुर खाँ औौर बख़्त ख़ाँ दोनों की गिनती उस बिप्लब के सब से अधिक योग्य नेताओं में की जाती है । रुहेलखण्ड के बाद इंमें लखनऊ और कानपुर को कुछ देर के लिए बोच में छोड़ कर बनारस और इलाहाबाद की ओर दृष्टि डालनी होगी । बनारस में कंपनी की ३७ नवम्वर पैदल पलटन, एक लुधियाने की सि रन पलटन और एक सवार पलटन थीं । आज़मगढ़ और वहाँ का तोपख़ामा गोरों के हाथों में था । नागरे गोररवपुर की से कलकत्ते तक उस समय केवल दानापुर में एक पूरी गोरी रेजिमेण्ट मौजूद थी। यदि एक साथ सब जगह स्वाधीनता की लड़ाई शुरू होती तो 7 अंगरेज़ों के लिए कम से कम उत्तरी भारत में ठहर सकना सर्वथा स्वाधीनता । आसम्भव था । ३१ मई को बनारस की बारगों में भाग लगी ।३ जून को गोरखपुर और आजमगढ़ के ख़ज़ानों से सात लाख रुपए नकद