पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज.pdf/३४६

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चरबी के कारतूस और क्रान्ति का प्रारम्भ

- चरी के कारतूस और क्रान्ति का प्रारम्भ १८२३ अपने अपने नगरों को स्वाधीन करने के बाद प्राज़मगढ़ और र-- जौनपुर दोनों जगह के सिपाही फैजाबाद की ओोर चल दिए । दोनों मगरों के ऊपर हरा झण्डा फहराने लगा । यद्यपि बनारस मगर पर कम्पनी का कब्जा रहाफिर भी ग्रास पास का अधिकांश इलाक़ा विप्नधकारियों के कब्जे में आ गया । जगह जगइ अंगरेजों के नियुक्त किए हुए नए जदारों को हटा कर पुराने पैतृ जर्मींदार उनकी जगह नियुक्त कर दिए गए 1 जगह जगह अंगरेजी अदाल, अंगरेज़ी जेलों और अंगरेज़ी दफ्तरों का ड्रामा हो गया । तार काट डाले गएरेलें उखाड़ कर फेंक दी गईगाँय गाँव में हारा झएडा लिए हुए स्वयं सेवक पहरा देने लगे । बनारस के प्रान्त भर में क्रान्तिकारियों ने एक भी अंगरेज खी को नहीं मारा और जिन । अंगरेजों ने हथियार रख दिए उन्हें शान्ति के साथ स्वयं गाड़ियों में बैठा कर नगर से चले जाने की इजाजत दे दी । क्रान्तिकारियों और अंगरेजों दोनों की दृष्टि से इलाहाबाद का नगर वनारस की अपेक्षा कहीं प्रधिक महत्व का । इलाहाबाद का । था। कलकत्ते से पश्चिमोत्तर प्रदेशों को जाने वाली

मय सब सड़कें इलाहाबाद में मिलती थीं। इलाहाबाद

का कितना भारत के ज़बरदस्त जिलों में से था । उसमें गोले बारूद और श्रा शन का एक बहुत बड़ा संग्रह था। लिखा है कि प्रयाग के के पण्डे श्राल पास की हिन्दू जनता के अन्दर स्वाधीनता के युद्ध का प्रचार करने में बहुत बड़ा भाग ले रहे थे । मुसलमान में हिन्दुओं