पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज.pdf/३५४

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प्रतिकार का प्रारम्भ

प्रतिकार का प्रारम्भ 2३१ जनरल नोल के श्रत्याचारों के विषय में एक अंगरेज इतिहास 6.- लेखक लज्जित होकर लिखता है ‘अच्छा यह है कि जनरल नील के प्रतिकार के विषय में कुछ स्लिम ही न जाय !" इतिहास लेखक सर जॉन के लिखता है- ‘फ़ौजी और सिविल दोनों तरह के गंगरेज़ आफ़सर अपनी अपनी नी अदालतें लगा रहे थे, अथवा बिना किसी तरह के मुकदमे का ढोंग रचे और

बिना मर्दनौरत या छोटे बड़े का विचार किए भारतवासियों का संहार

कर रहे थे । इसके बाद ट्रेन की प्यास और भी अधिक भडकी । भारत के गवरनर जनरल ने जो पत्र इनलिस्तान भेजे उनमें हमारी चिटिश पतिंमेयट के कानों में यह बात दर्ज है कि ‘वी श्रीरों यूर विों का उसी तरह बध किया गया है जिस प्रकार उन लोरों का जो विप्लब के दोपी थे ।’ इन लोगों को सोच समझ कर फसी नहीं दी गईबल्कि उन्हें उनके गव के अन्दर जला कर मार डाला गया, शायद कहीं कहीं उन्हें इत्तफातिया गोली से भी उड़ा दिया गया । अंगरेक्नों को गर्व के साथ यह कहते हुए श्रथया ने पों में लिखते हुए भी सोच न हुया कि हमने एक भी हिन्दोस्ती को नहीं छोड़ा और काले हिन्दोस्तानियों को गोलियों से उड़ाने में हमें पट्टा विनोद और आश्चर्यजनक बाभन्द चुनाव होता था । एक पुस्तक में जिसका बड़े बड़े अंगरेज़ आफ़सरों ने समर्थन किया है, तिरखा है सड़ों के रिस्तों पर और यारों में जो कारें टंगी हुई थीं, उनको ठतारने में सूर्योदय से सूर्यास्त तक मुदे होने वाली ग्राठ आठ Iड़ियों परयर तीन तीन महीने • " it is better not to rite anything about General Neills cevent !"