पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज.pdf/३५६

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प्रतिकार का प्रारम्भ

प्रतिकार का प्रारम्भ १८३३. यह दशा कुछ थोड़े बहुत ग्रामों की ही नहीं की गई 1 जनरल 7- नील ने अपनी फ़ौज को अनेक दस्तों में बाँट दिया था । एक एक . दस्ते में कई कई अफ़सर होते थे । इनमें से एक अफसर अपने केवल एक दिन के कृत्य को अभिमान के साथ बर्णन करते हुए अपने किसी अंगरेज़ मित्र को लिखता है किन्तु श्र।प यह जान कर सन्तुष्ट होंगे कि मैंने पीस पार्टी को मीन से मिला कर बराबर कर दिया ।" बनारस से जनरल नील अपनी विजयी सेना सहित इल।हाघाट की ओर बढ़ा । मार्ग में उसने बनारस से इलाहाबाद तक सही ही ग्रामुर्गों को ग्राम निवासियों सहित जला कर खाक कर दिया । ११ जून को जनरल नील इलाहाबाद पहुँचा । ग्र दि इससे पूर्व किले के अन्दर के सिख सिपाही बिप्लवफारियाँ इलाहाबाद से मिल गए होते औौर जिले के श्रन्र की निवासियों से असंख्य वन्दूकें और युद्ध की अन्य सामग्री बदता । चितबकारियों के हाथों में आ ।गई होती, तो जनरल नीत के लिए इलाहाबाद फिर से विजय कर सकना शायद असम्भव होता । लिखा है कि नील दूर से यह देख कर चकित "" 7 गया कि इलाहाबाद के किले पर अभी तक अंगरेज़ी झण्डा फहरा रहा है । इस पर भी बह इलाहाबाद जैसे किले के लिए किसी भारतवासी का पतवार न कर सकता था 1 उसने आते ही किले के भीतर के सिख सिपाहियों को पास के गाँव जताने के लिए बाहर भेज दिया और किला गोरे सिपाहियों के सुपुर्द कर दिया । कि वर्षों के