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भारत में अंगरेज़ी राज

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ने सहर्ष नील की याज्ञा का पालन किया । किसता और जिले के सामान को सहायता से अंगरेज़ों ने १७ जून को खुसरो वाल पर हमला किया । दिन भर खूब घमासान संग्राम हुआ । क्रान्ति 'कारियों ने बड़ी वीरता के साथ सामना किया। किन्तु अन्त में 'मौलवी लियाकतअली ने देख लिया कि नील की विशाल सेना के मुक़ाबले में उनका ठहर सकना असम्भव था, इसके अतिरिक्त लियाकतअली के पास उस समय तीस लाख का भारी ख़ज़ाना था, जिसे वह शत्रु के हाथ में पड़ने देना न चाहता था। इसलिए लियाक़तभली अपने साथियों और जाने सहित १७ जून की रात को कानपुर की ओर निकल गया। कानपुर के समर्पण के बाद लियाकतअली दक्खिन की ओर गया । वहीं से गिरफ्तार करके ‘उसे अण्डसन भेज दिया गया । वहाँ कई वर्ष तक निर्वासन भुगतने के बाद मौलवी लियाकत अली की मृत्यु हुई । इस समय इलाहाबाद से १५ मील पश्चिम महगाँव में, जहाँ कि लियाकतअली ‘का जन्म स्थान था, उनकी एक कन्या अब तक जीवित है। १८ जून को रात को अंगरेजों ने सिखों की मदद से इलाहाबाद के नगर में प्रवेश किया। ‘छोटे छोटे बालों इस अवसर पर इलाहाबाद के नगर को फॉली। निवासियों से नील और उसके आदमियाँ ने जिस भयद्र रूप में बदला चुकाया उसका कुछ अनुमान इस एक घटना से लगाया जा सकता है कि अनेक छोटे छोटे लड़कों को केवल इस अपराध में फाँसी पर लटका दिया गया कि वे हरे झण्डे हैं