पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज.pdf/३६

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भारतीय शिक्षा का सर्वनाश

भारतीय शिक्षा का सवना ११३५ होने लगी, जिनके बिना कि उन महकमों और अदालतों का चल ) सकना सर्वथा असम्भव था। और -उन्हें थोड़े से इस तरह के भारतवासियों की भी आवश्यकता अनुभव होने लगी जिनके ज़रिए शेष भारतीय जनता के हृदय के भावों का पता लगता रहे और जिनके ज़रिए से वे जनता के सार्यों को अपनी ओर मोड़कर रख सकें। सन् १८३० की पार्लिमेण्टरी कमेटी की रिपोर्ट में इन दोनों आवश्यकताओं का बार बार जिक्र आता है और साफ़ लिखा है कि कलकत्ते का 'मुसलमान का सदसाऔर बनारस का हिन्दू संस्कृत कॉलेज' दोनों अठारवीं सदी के अन्त में ठीक इसी उद्देश से कायम किए गए थे । इसी उद्देश से सन् १८२१ में पूना का - डेकन कॉलेज, सन १३५ में कलकत्ते का मेडिकल कॉलेज और सन् १८४७ में रुड़की का इंजीनियरिझ कॉलेज कायम हुए । डाइरेक्टरों ने ५ सितम्बर सन् १२७ के पत्र में गबरमर जनरल को लिखा कि इस शिक्षा का धन–“उच्च और मध्यम श्रेणी के उन भारतवासियों के ऊपर व्यय किया जाय, जिनमें से कि श्रापको अपने शासन के कार्यों के लिए सघ से अधिक योग्य देशी पजएट मिल सकते हैंऔर जिनका अपने शेष देशवासियों के ऊपर सवसे अधिक प्रभाव है 1’’

  • . . . with the superior and middle classes of the natives, froIn

whon the native agents whom you have becasion to employ, in the functions of.Government are most htly drawn, and whose influence on the west of their countrymen is the most extensive. "--Letter from the Court of Directors to the Governor-General in :ouncil, dated 5ln Septemlher, 1827, Ibitp, 490 , 09