पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज.pdf/३६६

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प्रतिकार का प्रारम्भ

प्रतिकार का प्रारम्भ १४३ भी चाल्र्स बॉल लिखता है कि शहर और आस पास के गाँव के - लोगों ने अंगरेजों का इतना पूरा बहिष्कार कर रखा था कि अपने मुर्दे और जट्रिमों को ढोने के लिए उन्हें डोलियें या मजदूर तक नहीं मिल रहे थे । कोई गाँव वाला उन्हें रसद देने के लिए तैयार न होता था । चाल्र्स बॉल लिखता है कि जो कोई अंगरेजों का काम करता था, देहाती उसके हाथ और नाक काट डालते थे या उसे मार डालते थे 1 इसके ऊपर जून की गरमी। नतीजा यह हुआ कि अंगरेजी कैम्प में हैज़े की बीमारी शुरू होगई। अब हम इलाहाबाद से हट कर सम् ५७ की राष्ट्रीय योजना के उन्नब स्थान कानपुर की ओर आते हैं। नाना कानपुर और साहब, उसके दो भाई बाला साहब और बाबा साहबनाना साहब का भतीजा राव साहब और चतुर अजीमुक्ला ख़ाँ कानपुर में क्रान्ति के मुख्य नेता थे। इनके अतिरिक्त प्रसिद्ध मराठा सेनापति तात्या टोपे भी, जिसके मुत पराक्रम का वर्णन भागे चल कर किया जायगा, उस समय बिर के दरबार में मौजूद था। सर झू व्हीलर कानपुर की अंगरेजी सना का सेनापति था। व्हीलर के अधीन तीन हजार देशो सिपाही हैं और लगभग एक सौ अंगरेज सिपाही थे । दिल्ली की स्वाधीनता का समाचार नाना साहब को १५ मई को मिलता और सर ह्य गू व्हीलर को १८ मई को इस पर एक अंगरेज लेखक लिखता है

  • निस्सन्देह विप्लव के अत्यन्त आश्चर्यजनक पहलुओं में से एक यह रहा

है कि भारतवासियों को दूर दूर के स्थाों की, समस्त महंट्वपूर्ण बटना ४१ नाना साहब।