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भारत में अंगरेज़ी राज

१४४० भारत में अंगरेज़ी राज को सूचना अत्यन्त शीघ्र और सन्दिग्ध रूप में मिलती रहती है । खबर ले जाने वाले मुख्यकर हरकारे होते हैं जो असाधारण वेग के साथ एक स्थान से दूसरे स्थान सन्देश ले जाते हैं ।’’ दिल्ली की ख़बर के आते ही कानपुर शहर में हिन्दू और मुसलमानों के बड़े बड़े जलसे होने लगे । छावनी शहर में जलसे में सिपाहियों की गुप्त सभाएं होने लगीं । स्कूलों बाज़ारों और सार्वजनिक स्थान में आगामी स्वाधीनता संग्राम की चरचा होने लगी । फिर भी नाना साहब ने ३१ मई तक चुप रहने का निश्चय किया, और सर टू व्हीलर ने गझ के दक्खिन में एक नया स्थान घेर कर किलेवन्दी शुरू की, ताकि आवश्यकता के समय कानपुर के अंगरेज उसमें प्रश्रय ले सक। लखनऊ से कुछ आर सेना व्हीलर की सहायता के लिए पहुँच गई । नाश्चर्य की बात यह है कि उस समय नाना पर को अंगरेजों तक भी अंगरेजों नाना साहव पर पूर्ण का विश्वास विश्वास था । व्हीलर ने नाना साहब को सन्देश भेजा कि आप आकर कानपुर की रक्षा करने में अंगरेज़ों को मदद दीजिये । २२ मई सन् १८५७ को नाना साहब ने कुछ लेमा और दो तोपों सहित विर से निकल कर कानपुर नगर में प्रवेश किया। व्हीलर ने कम्पनी का ख़ज़ाना नामा साहब को सौंप दिया। माना ने अपने दो सौ सिपाही ख़ज़ाने पर पहरा देने के लिये नियुक्त कर दिए।

  • Warrating of the Indian Retwol, p, 38.