पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज.pdf/३७१

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प्रतिकार का प्रारम्भ

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प्रतिकार का प्रारम्भ १४४५ मुल्ला नामक एक मनुष्य के सुपुर्द कर दिया गया। दीवानी के मुक़दमों के लिए ज्यालाप्रसाद, अजीमुल्ला ख़ाँ और वावा साहब की एक अदालत कायम की गई। इतिहास लेखक टॉमसन लिखता है कि अपराधियों को कड़े दण्ड दिए जाते थे और नगर में पूरी तरह अमन चैन था * . १८ जून और २३ जून को दो गहरे संग्राम हुए । अन्त में कोई चारा न देख २५ जून सन् १८५७ को जनरल अंगरेज़ी किले पर डीलर ने अपने किले के ऊपर सुलह का सफ़ेद सुलह का झन्डा झण्डा गाड़ दिया। तुरन्त नाना साहब ने लड़ाई बन्द कर दी। इसके साथ ही नाना ने एक पत्र जनरल व्हीलर के पास भेजा जिसमें लिखा था :

    • मतका विक्टोरिया की प्रजा के नाम--जिन लोगों का इलहौज़ी की भीति के साथ कोई सम्बन्ध नहीं रहा है, और जो हथियार रख देने और श्राम समर्पण कर देने के लिए तैयार हैं उन्हें सुरक्षित इलाहाबाद पहुँचा दिया जायगा ।”

२६ तारीख को दोनों ओर के प्रतिनिधियों में बात चीत हुई। इस बातचीत के सम्बन्ध में यह एक बात ध्यान देने योग्य है कि यद्यपि अज़ीमुल्ला ख़ाँ अंगरेजी भाषा का विद्वान था फिर भी ज्यही अंगरेज़ प्रतिनिधि ने अंगरेज़ में बात चीत प्रारम्भ की, अजीमुल्ला ने एतराज किया। उसने अंगरेज़ प्रतिनिधियों को विवश किया - The Story of Cawanport, by M. Thompson.