पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज.pdf/३७५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
१४४९
प्रतिकार का प्रारम्भ

प्रतिकार का प्रारम्भ १४४ यह है कि सिवाय उनसे नाज पिसवाने के और किसी तरह का भी अपमान अंगरेज स्त्रियों का नहीं किया गया 1xxx सामान्य अर्थों में किसी स्त्री पर अत्याचार नहीं किया गया। न किसी अंगरेज़ स्त्री के कपड़े उतारे गए, न किसी की बेइज्जती की गई और न जान बूझ कर किसी को अंग भंगा किया गया !"* इतना ही नहीं, सतीचौरा घाट: के हत्याकाण्ड की शुरू की गड़बड़ में कुछ हिन्दोस्तानी सिपाही चार अंगरेज़ स्त्रियों को पकड़ कर ले गए थे। समाचार पाते हो नाना ने तुरन्त उन सिपाहियों को कड़ा.दण्ड दिया और चारों अंगरेज़ स्त्रियों को उनसे वापस ले लिया । कैदी स्त्रियों और बच्चों के साथ नाना का व्यवहार अत्यन्त उदार था। उन्हें खाने के लिए चपाती और गोश्त दिया जाता था। कोई कड़ी मेहनत उनसे न ली जाती थी। बच्चों को दूध मिलता था और दिन में तीन तीन बार उन्हें हवा खाने के लिए बाहर आने की इजाज़त थी। स्वयं जनरल नील अपनी रिपोर्ट में लिखता है- "शुरू में उन्हें तुरा खाना दिया गया, किन्तु बाद में उन्हें अच्छा खाना ..-..- - - - • "The elementary passions of manhood were inflamed by the stories, happily not true, of the wholesale dishonour and barbarous mutilation of women . . . . As a matter of fact, no indignities, other than that of the compulsory corn grinding, were put upon the English ladies. . . . There were no outrages, in the common acceptation of the terin, upon women. No English women were stripped or dishonoured, or purposely mutilated." -History of Our Oun Times, vol. iii, by Justin dic Carthy. +Sir George Trevelyan's Catunpore. p. 299.