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भारत में अंगरेज़ी राज

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१४५० भारत में अंगरेजी राज 'दिया जाने लगा, साफ़ कपड़े मिलने लगे और ख़िदमत के लिए नौकर दे। दिए गए।"* इनमें से केवल कुछ स्त्रियों को अपने खाने भर के लिए थोड़ा सा आटा पीसना पड़ता था। | अब हम इन अंगरेज़ कैदियों से हट कर कानपुर के शेष वृत्तान्त की ओर आते हैं । | २८ जून सन् १८५७ को कानपुर नगर, छावनी और आस पास के इलाके पर से अंगरेज़ी राज के समस्त चिन्ह | पेशवा नाना विटने के पश्चात नाना साहब ने एक बड़ा साहब का दृश्योर दरवार किया । ॐ पलटन पैदल, दो पलटन सवार, अनेक ज़मींदार और असंख्य जनता इस दरवार में उपस्थित थी । सव से पहले सम्राट वहादुरशाह के नाम पर १०१ तोपों की सलामी हुई। इसके बाद २१ तोपों की सलामी नाना साहब की हुई । नाना साहब ने सिपाहियों और जनता को धन्यवाद दिया। 'एक लाख रुपए बतौर इनाम के फ़ौज में वाँटे गए। दरवार के बाद नाना साहब कानपुर से बिठूर गया। बिठूर में पहली जुलाई सन् १८५७ को नाना साहव धुन्धपन्त विधिवत् पेशवा की गद्दी पर वैठा । इस प्रकार सन् १८५७ के विप्तव में क्षण भर के लिए पेशवा की मृतप्राय सत्ता फिर से जीवन लाभ करती हुई दिखाई देने लगी। "At first they were badly fed but afterwards they got better food and clean clothing and servants to wait upon."--General Neill's Report.