पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज.pdf/३७९

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१४५१
प्रतिकार का प्रारम्भ

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प्रतिकार को प्रारम्भ १४५१ पक पिछले अध्याय में लिखा जा चुका है कि किस प्रकार लार्ड डलहौज़ी ने राजा गंगाधर राव के दत्तक पुत्र झाँसी और । बालक दामोदर राव के उत्तराधिकार को रानी लक्ष्मीबाई । नाजायज़ कह कर झाँसी की रियासत को जबरदस्ती कम्पनी के राज में मिला लिया था। गंगाधरराव की मृत्यु के बाद १३ मार्च सन् १८५४ को झाँसी की रियासत के कम्पनी के राज में मिलाए जाने का एलान प्रकाशित हुआ । समस्त प्रज्ञा में इससे घोर असन्तोष उत्पन्न हो गया । विधवा रानी लक्ष्मीबाई ने, जिसकी श्रायु उस समय केवल १८ वर्ष की थी और जिसने अपने बालक पुत्र की ओर से आश्चर्यजनक योग्यता के साथ राज का सारा कार्य सँभाल लिया था, एतराज़ किया। किन्तु कोई सुनाई न हो सकी। इतना ही नहीं, राजा गंगाधरराव मरते समय करीब साढ़े चार लाख रुपए के जवाहरात और ढाई लाख रुपए नकद छोड़ गया था 1 लॉर्ड डलहौज़ी ने इस समस्त सम्पत्ति को जबरदस्ती छीन कर यह कह कर कम्पनी के खज़ाने में जमा कर लिया कि अव दामोदराव बालिग होगा तो यह धन उसे दे दिया जायगा । डलहौज़ी ने स्पष्ट लिखा कि दत्तक पुत्र को चालिग होने पर पिता को इस निजी सम्पत्ति को प्राप्त करने का अधिकार होगा, किन्तु गद्दी का कभी नहीं । रानी लक्ष्मीबाई को इस समस्त सम्पत्ति श्रौर राज के बदल Jhansi Papers 1858, p. 31.