पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज.pdf/३८३

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प्रतिकार का प्रारम्भ

प्रतिकार का प्रारम्भ १४५५ पर लड़े गए 1 अवध की सल्तनत के ग्रंगरेजी राज में मिलाए जाने t r औौरअवध निवासियों के दुखों और शिकायतों अवध में क्रान्ति का वर्णन एक पिछले अध्याय में किया जा की तैयारी चुका है। अबघ के ज़मृदारों, यहाँ की पुलिस बहाँ की फ़ौज और करीब करीब समस्त जनता ने स्वाधीनता के i उस महायुद्ध की सफलता पर अपना सर्वस्व लगा दिया था। र बास्तव में क्रान्ति की तैयारी कहीं भी इतनी अच्छी न थी जितनी अबघ में । हजारों मौलवी और हज़ारों पण्डित एक पक बारग और ईई पक एक गाँव में आगामी शुद्ध के लिए लोग को तैयार करते फिरते थे । सर हेनरी लॉरेन्स ग्रषध का चीफ कमिश्नर था । लखनऊ छावनी के कुछ सिपाही मङ्गल पांडे की फाँसी सात नम्बर पलटन के बाद अपने आपको न रोक सके। मई के ग्र विहीन प्रारम्भ में वहाँ पर अंगरेज़ के कुछ मकान जला दिए गए 1 चाल्द वॉल लिखता है कि ३ मई को सात नम्बर

  • पलटन के सात उच्छट्ठल सिपाही फिटनेण्ट मीम के खेमे में

वे पहुँचे और कहने लगे–“हमें प्रापसे कोई ज़ाती झगड़ा नहीं, — ' किन्तु आप फिरड़ी हैं इसलिए हम आपको मार डालेंगे !’ भयभीत में किन्तु चतुर लेफ्टिनेट ने उनसे दया की प्रार्थना की और कहा- ‘मु एक ग़रीब आदमी को मारने से आपको क्या लाभ होगा, अर ग्राषकी शत्रुता तो इस राज से है ।’ सिपाहियों ने दया में जाकर उसे छोड़ दियाकिन्तु यह समाचार तुरन्त सर हेनरी लॉरेन्स