पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज.pdf/३८४

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प्रतिकार का प्रारम्भ

प्रतिकार का प्रारम्भ १४५७ आश्रय ले सक—पक मच्छीभवन और दूसरे रेजिडेन्सी। लखनऊ की समस्त अंगरेज़ लियाँ और बच्चे इन स्थानों में पहुंचा दिए गए और समस्त अंगरेज पुरुपा को फ़ौजी कवायद सखन का हुजूम हो गया 1 अवध की सरहद नैपाल से मिली हुई है । सर हेनरी लॉरेन्स हैं ने विशेष दूत भेज कर नेपाल रवार के प्रधान नेपाल से मदद मन्त्री सेनापति जहूबहादुर से प्रार्थना की कि की प्रार्थना आप इस आपत्ति में सेना से अंगरेजों की ? सहायता कीजिये । ठोक ३० मई की रात को 4 बजे छावनी की तोप फुटी । क्रान्ति के प्रारम्भ होने का यही चिह नियत था । सबसे क्रान्ति का प्रारम्भ पहले ७१ नम्पर पलन की बन्दूकों की आवाज़ सुनाई दी। अंगरेजों के बँगले जला दिए गए। जो अंगरेज मिला मार डाला गया।३१ मई को सवेरे हेनरी लॉरेन्स कुछ गोरी सेना और ७ नम्वर देशी सवार पलटन साथ लेकर विप्लवकारियों पर हमला किया। उस समय तक ७ नम्बर पलटन अंगरेजों की ओर थी, किन्तु मार्ग ही में इस पलटन ने भी कम्पनी का झण्डा फेंक कर हरा झण्डा हाथ में ले लिया। लॉरेन्स को उन्हें छोड़ कर अपने थोड़े से अंगरेज सिपाहियों सहित रेजिडेन्सी में शरण लेनी जाकर पड़ी। ३१ मई की शाम तक ४८ और ७१ नम्बर पैदल और ७ नम्बर सबार और देशी पलटन में भी स्वाधीनता का हरा अन्य भएडा फहराने लगा ।