पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज.pdf/३९०

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प्रतिकार का प्रारम्भ

प्रतिकार का प्रारम्भ १४६३ इस प्रकार दस दिन के अन्दर अवध से अंगरेजी राज स्न की तरह। मिट गया 1 उसका कोई अवशेप तक ग्राी न रहा । फ़ौज ने हमारे विरुद्ध विद्रोह किया । जनता ने पराधीनता की बेड़ियां तोड़ कर फेंक दीं, किन्तु नमें से किसी ने बदला नहीं लिया, किसी ने प्रन्याय नहीं किया । एक दो अपवादों को छोड़ कर शेप समस्त बीर औौर विद्रोही जनता ने भागते हुए अंगरे के साथ स्पष्ट दयालुता का खयवहार किया । प्रबंधनिवासियों के जिन शासकों (अर्थात् अंगरेजों) ने अपनी सत्ता के दिनों में, अत्यन्त प्रचण्डी (?) नीयत से अनेक लो के साथ घोर अन्याय किया था उनम शासकों का जब पतन हो गया तो प्रबधनिवासियों ने उनके साथ अपने व्यवहार में उच्च श्रेणी की उदारता औौर दयालुता बरती । अबध निवासियों के ये गुण साफ़ चमकते हुए दिखाई दे रहे थे ।’’ लॉर्ड डलहोत्री का बयान है कि वाजिदपुली शाह के प्रत्याचारों से अवध की प्रजा दुखी थी ! किन्तु जिस प्रकार वाजिद अली शाह सन् ५७ में समस्त अवध के ज़मृदारों, जागोर की सर्वे श्रियता दारांराजाओंसिपाहियों, किसानों, सौदागरों लारांश यह कि समस्त हिन्दू और मुसलमानों ने मिल कर बाजिद • " Thus in the course of ten days, the English administration in Oudh vanished like a dream and left not a reck behind. The troops mutinied, the people thre y of their allegiance, But there was no revenge, no cruelty. The brave and turbulent population, with a fe exceptions, treated the Augitives of the ruling race with marked kindness, and the bugh courtey and chivalry o the people of Oudh was conspicuous in their deaings with their। 1allen masters who, in the days of their power, had, from the best (1) of motives, inficted on many of them a grave arong"-Sir George W, Forest's Satz Pabary, vol it, p. 37.