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भारत में अंगरेज़ी राज

१४६४ भारत में अंगरेजी राज। अली शाह को फिर से अवध के सिंहासन पर बैठाने के लिए दस दिन के अन्दर अंगरेजी राज को उखाड़ कर फेंक दिया, उससे वाजिदअली शाह के शासन की सर्व प्रियता और कम्पनी के शासन की अप्रियता दोनों का साफ पता चल जाता है । अवध के अन्दर उस समय एक गाँव भी ऐसा न बचा होगा जिसने कम्पनी के झण्डे को फाड़ कर न फेंक दिया हो । अवध के विविध भागों से जमींदारों के सिपाही और स्वयं सेवक सहनों की संख्या में अब लखनऊ में बेगम हजरत लखनऊ शहर महल के झण्डे के नोचे श्रा आकर जमा होने की स्थिति लगे। अवध निवासियों की इस आज़ादी की लड़ाई में बेगम हजरत महल के अधीन अवध की श्रनेक स्त्रियां तक मरव्ाना वेप पहन कर हथियार बांध कर अपने अलग दल बना कर लड़ रही थीं । मैं लखनऊ शहर का एक भाग अभी तक अंगरेजों के हाथों में था । दो पलटन सिखों की, एक पलटन गोरों को और कुछ तोपढ़ाना इस समय लॉरेन्स के पास था। कानपुर के अंगरेज़ किले का मोहासरा उस समय जारी था। कानपुर में मैं अंगरेजों के हारने का समाचार २८ जून को लखनऊ पहुँचा। लखनऊ के क्रान्तिकारियों ने अंगरेज़ों पर हमला करने के लिए चिनहट नामक स्थान पर चढ़ाई की । कानपुर की पराजय का समाचार सुन कर सर हेनरी लॉरेन्स की हिम्मत टूटी हुई थी। २६ जून को लोहे के पुल के पास कम्पनी की सेना जमा हुई । एक अत्यन्त

  • Warratites acia Rsaul George Vickers, 1858.