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भारतीय शिक्षा का सर्वनाश

भारतीय शिक्षा का सर्वना ११8 के के भावों से दूर रक्खा जा सकता है और विदेशी शासन के लिए उपयोगी यन्त्र बनाया जा सकता है । प्रसिद्ध नीतिज्ञों में सर ड रिक हैसिडे को गवाही, जो घझाल का पहला लेफ्टिनेएट गवरनर हुआ, और सामैम की गवाही इसी अभिप्राय की थी। एक और महत्वपूर्ण प्रश्न जो १४ वीं शताब्दी के प्रारम्भ से भारत के उन अंगरेज़ शासकों के सामने उपस्थित पूर्वी और पश्चिमी था, जो भारतवासियों को शिक्षा देने के पक्ष में शिक्षा पर बहस थे, वह यह था कि किस प्रकार की शिी दा देना अधिक उपयोगी होगा । दो भित भिन्न विचारों के लोग उस समय के अंगरेज़ों में मिलते हैं । एक वे जो भारतवासियों को प्राचीन भारतीय साहित्य, भारतीय विज्ञान और संस्कृतफ़ारसी, अरबी और देशी भाषाएँ पढ़ाने के पक्ष में थे, और दूसरे वे जो उन्हें अंगरेज़ी भाषा, पश्चिमी साहित्य और पश्चिमी विज्ञान की शिक्षा देना अपने लिए अधिक हितकर समझते थे। पहले विचार के लोगों को ‘ऑोरियण्टलिस्ट' और दूसरे विचार के लोगों को ‘ऑक्सिडेण्टलिस्ट' कहा जाता है, अनेक वर्षों तक इन दोनों विचार के अंगरेजों में खूब वाद विवाद होता रहा । इसी बहस के दिनों में सन् १३४ में भारत के अन्दर लॉर्ड मैकॉले का आगमन हुआ, जिसके चरित्र का थोड़ा सा बम हम पिछले अध्याय में कर झाए हैं । मैकॉले से पहले करीब १२ वर्ष तक इस प्रश्न के ऊपर अत्यन्त तीव्र बाद विवाद जारी रह चुका था । मैकॉले के विचारों का प्रभाव इस प्रश्न पर निर्णायक साबित हुआ है मैकॉले