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भारत में अंगरेज़ी राज

१४७२ भारत में अंगरेजी राज जनता भी विप्लव के साथ पूरी सहानुभूति रखती थी। इसलिए अब हमें यह देखना होगा कि इन सब के प्रयत्नों को विफल करने के लिए अंगरेज़ अफसरों ने क्या क्या उपाय किए और उनमें उन्हें कहाँ तक सफलता प्राप्त हुई। पद्माव की सब से बड़ी छावनी उन दिनों लाहौर के निकट मियाँमीर में थी । मियाँमीर में हिन्दोस्तानी रॉबर्ट सिपाही गोरे सिपाहियों से ठीक चौगुने थे। मॉण्टगुमरी पझाव को हिन्दोस्तानी सेना ने यह तय कर रक्खा था कि सब से पहले मियाँमीर के सिपाही लाहौर के किले पर चढ़ाई करके उस पर क़ब्ज़ा करल, और फिर पेशावर, अमृतसर, फ़िलौर और जालन्धर की पलटनें एक साथ क्रान्ति प्रारम्भ कर दें । मियाँमीर की पलटनें रॉबर्ट मॉण्टगुमरी के अधीन थीं । मेरठ का समाचार पाते ही मॉण्टगुमरी सावधान हो गया। उसे अपने एक गुप्तचर द्वारा सूचना मिली कि मियाँमीर के सिपाही भी क्रान्ति के लिए तैयार हैं । तुरन्त १३ मई को सवेरे माँण्टगुमरी ने करीब एक हज़ार - हिन्दोस्तानी सिपाहियों को परेड पर जमा किया। गोरे सवार है तोपखाने सहित उनके चारों ओर खड़े कर दिए गए। सिपाहियों से हथियार रख देने के लिए कहा गया, सिपाहियों ने और कोई चारा न देखतुरन्त हथियार रख दिए। उसके बाद वे चुपचाप अपनी बारणों में चले आए । उसी समय एक पलटन गोरों की लाहौर के किले में भेजी गई, जिसने बहाँ पहुँच कर वहाँ के तोपखाने की मदद से किले के अन्दर